आओ चाँद से बातें करें
काव्य साहित्य | कविता धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’15 Jun 2019
आओ चलें, चाँद को निहारें
और बातें करें उससे
वो कुछ कहता है तुमसे
तुमने सुना है कभी?
सुनो, तुम ध्यान से
वो कुछ कहता है
कुछ दिखाता है तुम्हें
लेकिन तुम्हारी आँखें
तुम्हारा मन कहीं और है।
चाँद तुम्हें अच्छा लगता था
वो आज भी अच्छा लगता है
पर बदल गये हैं शायद
तुम्हारे देखने के नज़रिये
तुम कुछ कहना चाहते हो
लेकिन कह नहीं पाते हो
उसके लिए शायद कोई शब्द।
चाँद की रात में
उसकी शीतल चाँदनी में
बैठकर तुमने सुनी होगी
कितनी ही कहानियाँ
बुने होंगे कितने ही सपने
क्या तुम्हें याद है?
या भूल गये हो
ज़माने की भूल-भुलैया में।
रात की काली स्याही में
जब तुम घबराकर
इधर-उधर देखते हो
डरकर काँप उठते हो
वो तुम्हारे साथ रहता है
तुम्हारे संग-संग चलता है
तुम्हें मंज़िल तक ले जाता है।
इठलाते समुंदर की लहरों में
खिलखिलाते, हँसते
चाँद को देखा है कभी?
रात के आँगन में
रेत में लेटकर
चाँद को निहारा है कभी?
देखोगे, तो पाओगे उसे
अपने आस-पास कहीं
साथ-साथ चलते हुए।
आओ चलें, चाँद को निहारें
और बातें करें उससे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
Kamal Narayan Tripathi 2019/06/19 12:43 PM
Nice Line
ashique 2019/06/19 08:01 AM
pasand aaya, aur likhen
SANVEZ AHMED 2019/06/15 07:16 AM
nice lines very intresting
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
बाल साहित्य कविता
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
SATYAM MISHRA 2019/08/01 07:34 AM
BAHUT KHUB PANKTIYA LIKHA HAI APNE