कैसे हो?
काव्य साहित्य | कविता धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’1 Aug 2019
ज़िन्दगी की भाग दौड़ में
कब वक़्त मिला, कब नहीं
किसी से दो शब्द भी न कह सके
कैसे हो?
तपते रहे, जलते रहे उम्र भर
पर चलते रहे जैसे भी
ज़िन्दगी का सफ़र कटाते हुए
रोते हुए, गाते हुए
मुस्कुराना ज़िन्दगी है
पता है लेकिन...फिर भी
ऐसे वक़्त में भी
न किसी से कह सके
कैसे हो?
मिलते रहे कितने लोग
बिछुड़ते रहे कितने अपने
संगी थे जो कितने अपने
सपने जो थे सच्चे अपने
मिलकर भी जैसे भूलते गये
तेज़ी से वक़्त काटते गये
कभी मिले भी राहों में
तो न कह सके
कैसे हो?
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SATYAM MISHRA 2019/08/01 07:37 AM
very interesting lines