अहसास
काव्य साहित्य | कविता सन्तोष कुमार प्रसाद4 May 2016
मै ख्यालों मे खोया चल रहा था –
कि ठोकर लगी
आह क्या देखता हूँ,
पैरों से ख़ून बह रहा है
पैर रुक गये,
शरीर झनझना गया
दर्द पैरों से होते हुए -
पूरे शरीर मे फैल गया
भान हुआ…
एक छोटी सी चोट
पूरे शरीर को झनझना जाती है
सोच घर की ओर गयी
छोटे से घर में दरार नज़र आने लगी
बड़ा गया डाली टूटी,
छोटा गया तना टूटा
और घर ठूँठ बन गया
और माँ बाप आह...
शरीर जकड़ गया,
आँखों से आँसू बहने लगे
क्या दर्द के कारण?
नहीं ये वह दर्द था
जिसे शायद मैं भूल गया था
याद आने लगा वह
वह पगडंडी, तलाब और
वह मकान
सच ही तो था
हम भूल गये एक दूसरे को
घर को, गाँव को…
सब को।
पेड़ से कटकर –
डाली ने एक नयी ज़मीन
तैयार कर ली थी
मै भागने लगा बेतहाशा
पर मेरा घाव…
नासूर बनता जा रहा था!
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