दर्द
काव्य साहित्य | कविता सन्तोष कुमार प्रसाद15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आदमी की अदालत होती है
पेड़ों की नहीं, आख़िर क्यों?
पेड़ जानना चाहते हैं
कि उन पर होने वाले
कुल्हाड़ियों के वार
का जवाब कौन देगा?
उनके सगे सम्बन्धी से
अलग करने वाले को
कौन सी अदालत कार्यवाही करेगी?
पेड़ों के ज़ख़्म की
शिकायत कौन करेगा?
उनकी भी यूनियन होनी चाहिए
वे भी हड़ताल पर जाएँ
अपने ख़िलाफ़ हुए
अत्याचार के लिए!
पर अदालत तो आदमी के लिए है!!
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