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बहरूपिया

 

मैं अभिनेता हूँ मेरे बहुत चेहरे हैं 
खोद कर देखो ज़ख़्म कितने गहरे हैं 
हर रोज़ जीता हूँ एक नए चेहरे को 
मैं कौन हूँ आज भी समझ नहीं पाता 
आईना मुझे मेरा चेहरा दिखाता है 
या किसी और का 
हर एक रोल बख़ूबी निभाता हूँ 
थक हार कर बिस्तर पर लेटता हूँ 
सपाट आँखें देखती रहती हैं 
हौले हौले चलते हुए पंखों को 
बातें करती हैं दीवारों से 
सन सनआती हवा के थपेड़ों से 
जो खिड़की को खन खना जाती हैं 
अकेला पड़ा रहता हूँ बिस्तर पे 
कौन है जिससे बात करूँँ 
कुछ पश्चाताप करूँँ 
अपने तो पीछे छूट गए 
बहुत आगे निकल आया हूँ 
जीवन में अभिनय न कर सका 
आज अभिनेता बना फिर रहा हूँ 
मुझे साथ निभाना था 
पथ के साथी का 
घर की माटी का 
अभिनय दमदार दिखाना था 
शायद नाकाम रहा 
महत्वकांक्षा ने जीवंत अभिनेता को मार दिया
और बहरूपिये को ज़िन्दा कर दिया

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