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अमृत की खोज

जो है अनिवार्यता इस अस्तित्व की 
उसे मानने में न हम   संकोच करें 
कर विषपान कष्टों के    चषक से 
निरंतर हम अमृत की खोज   करें।

                     विष नारकी और अमृत सुरवासी 
                     यह कल्पना नहीं एक छल   है 
                     अमृत का वास भी होता वहीं पर 
                     जहाँ सदैव रहता   गरल    है।

यह निर्भर करता अन्वेषी पर 
किसको आराध्य वह बनाता है 
जो चाहता अमृत तत्व को ही
वह सदा अमृत को ही पाता है।

                       अमृत की खोज में यदि चल पड़ें 
                       तो विष का क्योंकर भय   करें?
                       अमृत स्थित हिय के भीतर ही तो 
                       क्यों इस बात पर हम संशय करें।

आत्मबल में ही निहित है अमिय
जो भी इस बात को दृढ़ हो मानेगा 
वही पुरुषार्थ के   परम  द्योतक 
एक अटल सत्य को   पहचानेगा ।

                        जहाँ दुर्बलता का होता है प्राबल्य 
                        वहीं पर विष का भी होता वास है 
                        जहाँ दुर्बलता बैठ गयी मन    में
                        वहीं होता शक्ति का भी ह्रास  है।

और पीयूष सदा शक्ति का प्रतीक 
अमृत वहीं, जहाँ रहता संबल  है 
अधरों को सुख देने वाली सुरा नहीं 
अमृत शुद्ध   पवित्र  अनल   है।

                        मानव स्वयं सुधामय, इसके सिवा 
                        और कोई भौतिक अमृत कलश नहीं 
                        मानव में ही वह तेज निवास करता 
                        जिसपर किसी और का वश   नहीं।

जो कोई भी अपने अंत:करण में 
ऐसी खोज सतत कर    पाएगा 
अमृत-तत्व को भी वही  व्यक्ति 
हृदय खंड में पूरा भर    पाएगा।

                         आत्मबल का यह अमृत उन्हीं का 
                         जिन्हें प्राप्त वीरत्व का है वरदान 
                         आस्वादन कर लिया जिसने   भी 
                         वही कहलाया अमृत की   संतान।

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