झक मारता हूँ
काव्य साहित्य | कविता पाराशर गौड़30 Aug 2007
किसीने मुझसे पूछा
क्या करते हो?
मैं बोला - झक मारता हूँ
वे बोले - भय्या-
ये तो सबसे बड़ा काम है
आज की दुनिया में
जो ये करता है उसीका नाम है।
संसद विधानसभाओं में
मंत्री संतरी क्या करते हैं?
अररे! झक मार मार कर
लोगों को झाँसा दे, देकर
संसद पहुँच कर मौज करते हैं।
आप पैदल
वो कारों में
तुम झोपड़ियों में
वे महलों में
ये सब इसी का कमाल है
इसी का धम्माल है।
जब वे महलों से नीचे देखते हैं
तो उनकी नज़रों में
मैं और आप--
कीड़े जैसे रेंगते हैं।
भय्या--
इसीलिए कहता हूँ
इस झक को कस के पकड़ लो
मैं तो कहता हूँ लटक लो
जैसे-
मायावती काशीराम को पकड़े है
उमा भारती अटल को जकड़े है
बना बनाकर सबको उल्लू मौज करो
चुगल चुगलीखोल बन
लड़ने लड़ाने के भेद सोचो
चुनाव में चुनाव लड़कर संसद पहुँचो
फिर जितनी झक मारनी है मारो!!
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