परिणाम
काव्य साहित्य | कविता पाराशर गौड़30 Aug 2007
जिस दिन मैंने
अपन पैत्रिक घर से
विदेश के लिए पाँव रखा था
मुझे...
तभी लगने लगा था कि ये अब
वापस नहीं लौटेंगे...
ये देश
जिसमें मैं आकर बस गया हूँ
इसने मुझे मेरे साथ साथ
मेरी पीढ़ी, मेरे समूचे राष्ट्र को भी
निगल लिया है।
और अब मैं...
अपनी पहचान के लिए
छटपटा रहा हूँ
कि मैं कौन था
कहाँ से आया हूँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
प्रहसन
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं