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समय (पाराशर गौड़)

ये समय तू रुक जरा
मेरी सुन मेरे साथ क्या हुआ
ये दिलकी पीड़ क्यों जगी
ये ऐसा क्यों हुआ......।


उगते दिनको देखा
देखी तपती दोपहरी
लड़खड़ाती शाम देखी
ढलती रात भी.........


सँभल सँभल के ना सँभल सका
ये कौन है जो मेरी
तरह का हो गया......।


आते जाते वक़्त, देखा
छूटता साथ साया भी
बदलती देखी रेखा
रेखायें हथेली की
ये बदलते साये क्यों हुए
ये ऐसा क्यों हुआ...... ।


बूँद पानी की हम
समन्दर मे ढूँढ़ते रहे
सपने देखे दिन में हमनें
आँख मलते हुए
तारे सो गये है
है चाँद खो गया......।


ढलता चाँद देखा
छुपते तारे भी
मुस्कुराता चेहरा देखा
देखी रोती आँख भी
ये कौन है जो
तपती रेत में हवा दे गया ...।

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