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श्रावणी

बसेसर के आँखों की बेबसी बारम्बार लहू बनकर बह जाते थे. . .। लेकिन मुँह बंद रखने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता था. . .। काले कोट वाला बाबू कितना कुछ बोलते जा रहा था. . .। गाँव के सारे लोग उसकी बिटिया को बदचलन, बेहया, और जाने क्या-क्या कहे जा रहे थे। . . .उसकी सत्रह साल की बेटी कटघरे में चुपचाप खड़ी सब सुनकर सिर झुकाए खड़ी थी। काले कोट वाला वकील बाबू कहे जा रहा था, "यह लड़की जो भोला सा चेहरा लिए यहाँ खड़ी है, मी लार्ड, इसके मासूम चेहरे पर मत जाइए। तीन खून किए हैं इसने, इसे फाँसी की सज़ा मिलनी ही चाहिए, ताकि इन जैसे लोगों को सबक़ मिले, क़ानून के लिए सब बराबर है। ग़रीब हैं तो क्या कुछ भी करेंगे! तीन परिवारों के घर में अँधेरा कर दिया इस मासूम सी दिखने वाली लड़की ने. . .। ज़रा सोचिए, अगर इस उम्र यह लड़की तीन लोगों को मार सकती है तो इसे बिना सज़ा दिए छोड़ दिया गया तो यह जाने क्या करेगी और कितने लोग मारेगी? इस लड़की को फाँसी की सज़ा मिलनी ही चाहिए।"

जज साहब सब सुनकर बोले, "तुम्हें कुछ कहना है अपनी सफ़ाई में?"

बसेसर अपनी बिटिया को देख रहा था कि अब श्रावणी क्या करेगी? 

सिर उठाकर देखा श्रावणी ने जज की ओर देखा और कहा, "सफाई में क्या कहूँ, मालिक, सफाई करने के वजह से ही तो यहाँ खड़ी हूँ। अगर गंदगी साफ करना गलत है तो फिर मैं क्या कहूँ?. . ."

बीच में ही काले कोट वाला बाबू बोला, "देखा, मी लार्ड, इसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है। ख़ून करना इसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। इसके लिए किसी को मारना घर की सफ़ाई करने जैसा है।" 

जज साहब ने हथौड़ा बजा कर चुप करा दिया और बोले, "आप उसे अपनी बात पूरी करने दें, तुम कहो क्या कहना चाहती हो?"

श्रावणी ने धीरे से पूछा, "मैं क्या कहूँ, मालिक, बस कुछ पूछना चाहती हूँ, क्यों गरीब की बेटी बस सिर्फ एक देह है? अभी बारहखड़ी पढ़ना भी उसे आता नहीं और आप बड़े लोगों को लगने लगता है कि उसकी देह कभी भी खरीदी जा सकती है; वो भी दो पैकिट टिकुली, लाल, बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के बदले बस. . .!

"गरीब की बेटी का बखान किसी कविता या कहानी में नहीं मिलता। जब आप अपने मन की नायिका को किताबों के पन्नों में खोज रहे होते हैं, उस बकत गरीब की बेटी खड़ी होगी धान के खेत में, टखने भर पानी के बीच या कहीं गोबर में सनी बना रही होगी उपले और सुन रही होगी किसी अधेड़ मनचले की अश्लील फब्तियों को। फिर भी सरेआम खिलखिलाहट बिखेरती अपनी बकरियाँ ले गुजर चुकी होगी गाँव की गलियों से. . .। आप चाहें तो बुला सकते हैं उसे चोर या बेहया। आपकी नजरों में वह हो सकती है दुष्चरित्र भी क्योंकि मालिक के बेटे की आँखें भरे बाजार में भी उसके पूरी देह को नाप लेती हैं। आपकी ऊँची–ऊँची दीवारों से टकराकर दम तोड़ देती है आवाज़ें उसकी। और जो बचा सके गरीब की बेटी की इज्जत को ऐसी कोई चारदीवारी बनी ही नहीं है।

"मैं ये भी पूछना चाहती हूँ कि क्या गलत है अगर मैं अपने बापू की पान की दुकान पर बैठ कर पान-बीड़ी बेचती हूँ? मेरे बापू का शरीर ठीक नहीं रहता है। माई तो गये बरस ही चली गई. . . दवाई के लिए पैसे नहीं थे ना। तब मैंने दुकान चलाने की सोची। लेकिन लोगों को सही नहीं लगता है - गाँव की औरतों का कहना है कि मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ क्योंकि मैं दुकान पर हमेशा सबसे दाँत निकाल कर बतियाती हूँ। गाँव के सारे मरद रोज किसी ना किसी बहाने से मेरी दुकान पर आते हैं। फिर भी यहाँ खड़े होकर मुझे बदचलन कह रहे हैं। उस दिन शाम दुकान बंद करके घर की तरफ जाते बकत जब इस साहूकार का बेटा और उसके दोस्त मुझे उठाकर ले जा रहे थे तब ये इज्जत के ठेकेदार कहाँ थे? कोई नहीं बोला कुछ भी. . . मगर आज सब आ गए मुझे बदचलन कहने।

"मैं नहीं मानती मैंने कोई गलत काम किया है, अपनी इज्जत बचाना कोई गलत काम नहीं है, वो तो महेसर भाग गया वरना उसका सिर भी पत्थर से तोड़ देती, आप जो सजा देनी है दे दो, मगर मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। बस इतना दुख है कि मुझे कुछ हो गया तो मेरे बापू का ख्याल कौन रखेगा?"

जज साहब ने पूछा, "तुमने पुलिस को क्यों नहीं बताया, वो तुम्हारी मदद कर सकते थे।"

श्रावणी ने जरा हँस कर कहा, "पुलिसवाले, उन्हें हम गरीबों से क्या लेना-देना, हम उन्हें क्या दे सकते हैं? पिछले साल आम के बागान में रमजान काका कि बारह साल कि हिना की लाश मिली थी। टूटी चूड़ियाँ, तार-तार कपड़े उसकी कहानी बता रहे थे। लेकिन आपके पुलिस वाले कहते हैं किसी जंगली जानवर का काम है, तो किसे पकड़ें? अब मैंने उन जंगली जानवरों को मार डाला तो मुझे क्यों पकड़ा है?"

इतना कहकर श्रावणी तो चुप हो गई मगर बसेसर के आँसू फिर उमड़ आए, जज साहब बोले,"मैं समझ सकता हूँ तुम्हारी बात, अगर मुझसे पूछा जाए तो अपनी इज़्ज़त बचाना कोई ग़लत काम नहीं है; मगर क़ानून अपने हाथ में लेना भी सही नहीं है। आज के लिए यह अदालत बरख़ास्त की जाती है, आगे की सुनवाई कल होगी।"

श्रावणी को जेल में फिर से ले गए। जाते हुए उसने बसेसर से अपना ख़्याल रखने के लिए कहा। बसेसर ने उसका चेहरा देखा, अजीब सी चमक थी उसके चेहरे पर। श्रावणी. . . दुर्गा सप्तमी को जनम हुआ था उसका. . .! तभी बड़े प्यार से बच्ची का नाम श्रावणी रखा था. . .! माँ दुर्गा का एक नाम होता है। और आज वही माँ दुर्गा दिखाई दे रही थी बसेसर को अपनी बेटी में। तभी ज़ोर-ज़ोर से बाजे की आवाज़ सुनकर बसेसर ने पलट कर देखा तो, माँ दुर्गा की सवारी जा रही थी. . .। सबने हाथ जोड़ कर नमन किया, आज माँ दुर्गा का विसर्जन है।

घर लौटते हुए बसेसर सोच रहा था, "कितनी अजीब बात है- जहाँ सब लोग माँ दुर्गा की पूजा करते हैं, क्योंकि उन्होंने महिषासुर को मारा था, वहीं जब उसकी दुर्गा ने असुरों को मारा तो उसे जेल में डाल देते हैं।"

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टिप्पणियाँ

लक्ष्मीनारायण 2021/07/20 07:26 PM

रमजान काका की बेटी की लाश के पास टूटी चूड़ियां मिलना हिन्दू मुस्लिमों के बीच समरसता का भाव प्रदर्शित करती भावना प्रधान कहानी ।

Ajay rattan 2019/10/15 07:58 AM

Beautiful story

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