आम्रपाली
काव्य साहित्य | कविता ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'15 Aug 2019
अब तक जीवंत सा है सब
कुछ मेरे स्मृति पटल में
मैं खड़ी असहाय चाह रही थी
समा जाऊँ इस धरातल में
एकत्र हुआ था संपूर्ण वैशाली
नगर चर्चा का मैं थी विषय
कोलाहल से भरा था जनसमूह
होना था आज मेरा निर्णय
ना थी जानकारी किसी को भी हूँ
किस की वंशज किस कि मैं दुहिता
सब के मुख पर था यही कथन के
'माँ' थी मेरी कदाचित् कोई पतिता
ईश्वर ने दिया यह अपार सौंदर्य
पर सब कहते हैं मैं हूँ इसकी दोषी
हर नेत्र कर रहा था मुझे विवस्त्र
हर पुरुष बन गया था मेरा अभिलाषी
चल रहा था अंदर बाहर पुरज़ोर मंथन
क्या बन पाऊँगी किसी की परिणीता?
परंतु मेरा जन्म, यह यौवन, यह रूप
अनायास ही बना रहा था मुझे लाँछिता
इस सभा ने अंततः किया मेरा निर्णय
सुनकर आई मुख पर एक मलिन स्मिता
अंधकार में डूब गया था भविष्य मेरा
हर स्वप्न से हो गई थी अब मैं वर्जिता
हुआ घोषित आम्रपाली है नगरवधू
लहरा गया समूह में हर्ष पुरुषोचित
ना थी कोई प्रेयसी किसी प्रीतम की
होना था हर पुरुष के लिए सज्जित
हर दिवस रहता केवल स्याह मेरा
हर रात्रि होती थी कालिमा रंजित
हर बहते समय के साथ हर क्षण हर पल
हो रही थी मेरी देह और आत्मा दूषित
आज यह कैसा आभास है कैसी कंपन
कैसी आस जगी है इस व्याकुल मन में
कदाचित् प्रभाव है उस तेजोमय आभा का
जो थी उस भिक्षुक के शांत नयन में
कुचल दिया था अपने ही करों से अपनी
हर इच्छा को, आज जागी है नई चाहत
याचना केवल इतनी ही है, मोक्ष प्राप्ति के
पथ पर अग्रसर हूँ, सहायक बने तथागत
बुद्धं शरणं गच्छामि। धर्मं शरणं गच्छामि।
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टिप्पणियाँ
Debabrata 2019/08/15 01:25 PM
Suoerb
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yamini gupta 2019/08/28 04:34 AM
ममस्पर्शी भाव अभिव्यक्त करती पंक्तियां