जगन्नाथ स्वामी
काव्य साहित्य | कविता ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
निकल अपने श्री मंदिर से
प्रभु जी आते भक्तों बीच
रहकर साथ हमारे, आत्मा
तक कर देते हैं पावन हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
युगों पहले दिया था वचन
निभाने आते मौसी के घर
रिश्तों से जुड़कर, रखना
सिखाते वचन का मान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
भटके ना कभी मन हमारे
रहे बस सत्य पथ पर ध्यान
सच्चाई की राह चलें सदा
प्रभु जी ऐसा दो ज्ञान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
जब भी पड़े विपदा कोई
धीरज ना खोएँ हम कभी
ऐसे कर्म करें जीवन में
मिलता रहे सम्मान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
करें मानवता का सम्मान
मिलता रहे आशीष यही
दिल बसे हर जीव हेतू दया
बना दिजिए ऐसा इंसान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
हृदय में रहे सदा सेवा भाव
ना आवे कभी मन में अंहकार
हर मुख पर ला सकें मुस्कान
प्रभु दिजिए ऐसा वरदान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
ना चाहे कभी सोना चाँदी
ना हो जाएँ ग़लत के आदी
बस आपके श्री चरणों में
दिजिए थोड़ा सा स्थान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
ना छोड़ना कभी हाथ हमारा
ना करना कभी स्वयं से दूर
हम भी गिने जाएँ भक्तों में
दिजिए कुछ ऐसी पहचान हमें
जय जय जगन्नाथ स्वामी
नयन पथगामी भवतु में॥
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लक्ष्मी नारायण गुप्त 2021/07/18 10:57 AM
आप सौभाग्यशाली हैं जो उनके निकट हैं । आपके हृदय की भावना से हमें भी अपने आपको उनके निकट होने का अनुभव कर रहे हैं ।