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एक मुहब्बत ऐसी भी

आज 40 दिन हो गए, अंशुल को गीत के मैसेज का इंतज़ार करते हुए, मगर कोई मैसेज नहीं आया। लॉकडाउन के कारण आजकल घर पर ही रहना पड़ता है, दो ऑनलाइन क्लास और दिनभर कोई काम नहीं होता है, अंशुल बार-बार मोबाइल उठाकर देखता, कई मैसेज होते मगर जिस का इंतज़ार उसे था वह नहीं मिलता उसे।

आज उसे याद आ रहा था, कैसे पिछले साल 15 दिनों तक गीत ने उसे एक अनजान नम्बर से मैसेज भेज-भेज कर परेशान किया था। वो तो एक दिन उसने ग़लती से 'अंश' लिख दिया था तब उसने झट से पहचान लिया, क्योंकि उसे 'अंश' गीत ही बुलाती थी और वो संगीता को 'गीत' बुलाता था। उसके बाद रोज़ ही बात होती थी दोनों की, गीत उसे हर छोटी बात बताती थी, मगर अंश अपनी हर बात नहीं बताता, शायद कोई संकोच था मन में। गीत कितनी ही बार इस बात की शिकायत करती; मगर वो मुस्करा कर रह जाता था, और गीत उसे कहती, "तुम ये डिंपल वाली मुस्कान दिखाकर हमेशा हमें चुप करा देते हो।"

हमेशा सबसे हँस कर मिलने वाली गीत की आँखों में एक अजीब सा ख़ालीपन दिखता था जो सिर्फ अंश ही देख पाता था। एक दिन उसने गीत को पूछ ही ली इस ख़ालीपन की वज़ह और जो पता चला वो सुनकर अंशुल को यक़ीन नहीं हुआ। गीत का पति किसी दूसरी औरत के साथ रहता था और वह एक पत्नी के, एक माँ के, एक बहू के सारे फ़र्ज़ निभाती, मगर किसी को सच नहीं बताती कभी। बस यही ग़म उसकी आँखों में रहता था। उस दिन से अंशुल के मन में गीत के लिए एक अलग जगह बन गई थी। वो दोनों एक दूसरे को ढेरों मैसेज करते, कभी-कभी फोन करके भी देर तक बात करते थे। 

ऐसे ही एक साल बीत गया वो दोनों मानसिक तौर पर एक दूसरे के काफ़ी क़रीब आ गए थे, मगर शारीरिक तौर पर आज भी वो दोनों अपने दायरे से बाहर कभी नहीं गए। गीत को कविता लिखने का बहुत शौक़ था, वो अक्सर अपनी व्यथा कविता में डाल देती। उसकी कई कविताएँ प्रकाशित भी होती थीं। उसी शौक़ के चलते कभी-कभी अंशुल को अगर कोई कविता मिल जाती तो वो उसे गीत को भेज देता था। एक दिन उसने गीत को एक शेर भेजा –

"बस अपने तसव्वुर को हक़ीक़त समझ लिया
ज़रा सी ग़ुफ़्तगू को  मोहब्बत   समझ  लिया।"

जवाब में गीत ने उसे लिखा – 

"हमने आपकी गुफ़्तगू को मुहब्बत समझ लिया 
उसी मुहब्बत को अपना पूरा जहां समझ लिया।"

उस दिन उनकी दोस्ती एक क़दम आगे बढ़ गई, दोनों ने बिना कहे अपनी मुहब्बत का इज़हार कर दिया था। आजकल गीत की आवाज़ में अंशुल को ख़ुशी की खनक सुनाई देती, वो ख़ुश था कि उसकी मुहब्बत गीत को अपने ग़म भुलाने में मदद कर रही थी। लॉक डाउन की वज़ह से मिलना नहीं हो पाता था इसलिए अंशुल ने गीत से उसकी तस्वीर माँगी। गीत की तस्वीर देखकर वो दंग रह गया था। गीत की आँखों में वो पहले वाला ख़ालीपन नहीं था, उसकी आँखें ख़ुशी से चमक रही थीं। अंशुल भी बहुत ख़ुश हुआ कि यह चमक उसकी वज़ह से है। सब कुछ सही था मगर जाने उस दिन अंशुल के दिमाग़ में क्या आया कि फोन पर बात करते हुए उसने गीत से कहा, "भले ही हम दोनों ने कभी अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया मगर फिर भी नैतिक तौर पर हमारा रिश्ता ग़लत ही है।"

शायद यह बात ही गीत को बुरी लग गयी और उसने काम का बहाना कर के, फोन का बहाना कर के फोन रख दिया। दिन भर कोई मैसेज नहीं, अगले दिन शाम को एक मैसेज आया, जिसमें लिखा था, "अंश, आपने सही कहा हमारा रिश्ता ग़लत है, भले ही हमने कभी आपके परिवार का बुरा नहीं चाहा, ना ही मानसिक प्रेम से अधिक की चाह की है, मगर फिर भी तुम्हें हमारा रिश्ता ग़लत लगा, तो यही सही। हमने एक फ़ैसला लिया है, हम आज से स्वयंसेवक बन कर कोरोना की जंग में ख़ुद को शामिल कर रहे हैं। हम आज से आपको कोई फोन, कोई मैसेज नहीं करेंगे। अगर यह जंग जीत कर आए तो फिर मिलेंगे वरना भूल जाना हमें।"

पढ़कर जैसे अंशुल का सिर चकराने लगा, उसने तुरंत उत्तर दिया, "मेरे कहने का मतलब यह नहीं था गीत, तुम यूँ मुझसे दूर मत जाओ, मैं टूट जाऊँगा, तुम्हारे बिना अकेला हो जाऊँगा मैं, मत जाओ गीत, अपने अंश से दूर मत जाओ।"

मगर तब तक बहुत देर हो गई थी, उस दिन के बाद आज तक कोई मैसेज नहीं आया। अंशुल आज भी गीत का इंतज़ार कर रहा है, वो इंतज़ार कर रहा है इस महामारी के अंत होने का, इस जंग के ख़त्म होने का, उसकी गीत के लौटने का, उसके मैसेज का। क्या उसका इंतज़ार सफल होगा? यह कोरोना की जंग कब ख़त्म होगी? क्या उसकी गीत उसे फिर मिलेगी? 

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