कहकशां
शायरी | नज़्म ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ज़र्द हो गुल ना ऐसा गुलिस्तां हो
हर गुल का अपना एक बाग़वां हो।
रोक सके ना उड़ान सय्याद अब
हर परिंदे का अपना आसमां हो।
बिखेरें ज़ाफ़रान-ए-ख़ुशी हर सू
इस ख़ुल्द का अपना निगेहबां हो।
रूबरू कर दे जो दैरो-हरम से
सबका एक ज़ाहिद मेहरबां हो।
इंद्रधनुष सा रंगीन हो फ़लक जहाँ
इन ख़्वाबों का अपना पासबां हो।
बने जहाँ रंगरेज़ अपने ख़्वाब के
इन अत्फ़ाल का अपना एक जहां हो।
गुनगुनाए गीत अमन का 'सना' हर बशर
हर आफ़ताब का एक कहकशां हो।
ज़र्द=पीले मुरझाए; परवाज़=उड़ान; सय्याद=बहेलिया; ज़ाफ़रान=केसर; ख़ुल्द=स्वर्ग; निगेहबां=निगरानी करने वाला; दैरो हरम=मंदिर मस्जिद; ज़ाहिद=धर्मोपदेशक; पासबां=रक्षक; अत्फ़ाल=बच्चे; बशर=आदमी; कहकशां=आकाशगंगा
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