वीरत्व का सम्मान
काव्य साहित्य | कविता क्षितिज जैन ’अनघ’15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
छोड़ कर मधुर मीठे से उद्गारों को
त्याग कर ठंडी शीतल बयारों को
आओ, आज गरम लू का सत्कार करें
फूलों से नहीं काँटों से शृंगार करें।
भूलकर कोमल सौन्दर्य के गानों को
प्रणाम करें ओज व शौर्य के दीवानों को
सुख शैया त्याग कर्म का आह्वान करें
विश्रांति का नहीं पौरुष का सम्मान करें।
सम्मान करें, जीवन की इस सच्चाई का
अकेले ही जलती हुई एक दियासलाई का
नमन, निर्भीक बहती हुई एक कश्ती का
और साहस की उन्मुक्त अभिव्यक्ति का।
बिना सींचे उगते ऐसे ही नवपल्लव नहीं
बिना संघर्ष किए कोई विजय संभव नहीं
अपनी ही शक्ति से अपना उत्थान करें
दुर्बलता का नहीं, पराक्रम का सम्मान करें।
बाधाओं से साक्षात्कार या जीवन संग्राम हो
समक्ष उपस्थित चाहे विघ्न ही तमाम हो
क्षण भर को भी जो वीर थे घबराए नहीं
नमन उन्हें मस्तक जिन्होंने झुकाये नहीं।
स्वागत करें, कष्टों के सारे प्रहारों का
उत्कर्ष हो सकता नहीं, भय के मारों का
रिसते हुए घावों पर भी चलो शान करें
सुख का नहीं, पीड़ाओं का सम्मान करें।
चलते हैं जो हथेली पर अपनी प्राण लेकर
हृदय खंड में वीरत्व का वरदान लेकर
नमन करें जिन्हें बाधाओं की परवाह नहीं
धूप नहीं अखरती व छाँव की चाह नहीं।
आराम से अधिक संघर्ष जिन्हें प्यारे हैं
चुभते नहीं जिन्हें पथ के अनियारे हैं
बाधाओं से अधिक संकल्प का ध्यान करें
भय का नहीं चलो वीरत्व का सम्मान करें।
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