बस मैं और तुम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नीलिमा रंजन1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
प्रसन्न होती हूँ जब,
अनुभूत करती हूँ तुम्हारी ऊष्मा
और लगता है,
पवन नृत्य कर रहा है
मेरे पगों के आसपास।
हृदय का धवल कपोत
पसारता है पंख,
समाहित कर लेता है,
यह रिमझिम फुहार,
यह शिशिर का कंपन,
यह ग्रीष्म की धीमी दहक।
लगता है बाँहों में सिमट जाऊँ तुम्हारी,
अपना नाम लिख दूँ
तुम्हारी हर धड़कन पर,
यह एकाकी मन
आवृत्त कर लेता है अस्तित्व
मैं, एकाकी मैं
और लिखती जाती हूँ
तुम्हारा नाम
हर पल पर, हर महक पर,
हर छाँव पर, हर ठाँव पर,
पात पात पर,
और वही है
मेरी अंतरात्मा का गीत,
मेरी गीतांजलि,
वह गीत, रचना चाहा जिसे जीवन भर।
सुनो,
तुम भी लिखो ना एक गीत,
मेरे नाम,
राह पर, सारंग पर,
तारक पर,
गुँजा दो गगन मण्डल
देखो,
मौन ना रहो
मौन करवा देता है
अनजाने त्रुटियाँ
जगा देता है
अनचीन्हे अन्दोह।
मेरे आकाश पुंज,
ध्रुवतारे मेरे,
तुम तो अटल हो ना।
ओ मेरी आकाश गंगा
बहना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
खिलते कमलदलों के बीच,
अद्भुत कंक समूहों के साथ,
प्रणय गाथागीत की तरंग में
उस द्वीप तक
द्वीप जो हमारा है,
द्वीप जो किनारा है।
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