एकालाप
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नीलिमा रंजन1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
आओ ना मित्र,
बैठो मेरे पास,
जी लो मेरे साथ,
यही है ईश्वरेच्छा
और यही प्रारब्ध।
स्मरण रखो औ’ विश्वास करो,
मानव हो सकता है
मात्र मानव,
अपनी कुशलता-हताशा-पराजय के साथ भी,
और यह गात
होना होगा इसे आत्मा से एकात्म।
चलो ढूँढ़ें युवावस्था का दाय
बढ़ती वय में
और पाएँ शान्ति विवेक में,
गंभीरता में, विद्या में, ज्ञान में।
बाँधे सभी एक अनुशासन में
जानें कि क्यों, कब, कैसे हो जाएँगी
विपरीत धारणाएँ एक।
तन कर सकता है चेष्टा छल की,
आत्मा से,
समर्थ है क्या समक्ष आत्मा के
क्योंकि बनता है यह तन,
कष्ट-पात्र, कुचेष्टा से।
मानव है
उठ खड़ा होता है
भावनाओं की तीव्रता से,
यत्न करता है सम्हालने
और होता है ऊर्जित
सकारात्मक,
बढ़ चलता है क़दम-क़दम
सोचता है
चलो करें आकलन विगत का
स्वीकारें आज के निर्णय को।
कुंभकार ईश्वर,
हम आकृत माटी पुतल,
वही भाग्य निर्माता,
वही भाग्य विधाता,
वही निर्धारण कर्ता
हमारा भविष्य अवधारक।
धर दिया उसने
उच्चतर मंच पर हमें, मानव को,
और संदेश दिया:
संदेश दिया,
आत्मा अमर, अजेय।
और मानव गात,
प्रथम चरण अस्तित्व का,
युवावस्था अप्राप्य पाने का संकेत
तन चेष्टा करता है,
छलने की प्रकृति को,
अंतरात्मा को
क्या हृदय संगी है तन का?
मथ देते हैं प्रश्न अनुत्तरित।
स्वीकारते हैं,
सभी है दैवीय अनुकम्पा,
हम मात्र जीते हैं,
सीखते हैं,
वय देती है वरदान
अंतर करने का
समझ पाने का
सत्य-असत्य, उचित-अनुचित।
विस्मृत नहीं करना होगा,
अज्ञात है सफलता-असफलता,
मिलेगी जीवन के उस पार,
तो जीना होगा,
ईश्वर प्रदत्त मानव जीवन,
संयम धर, संतोष कर।
यह मानस भी ईश्वर अनुग्रह,
शेष है कदाचित अंतिम परियोजना
अचिंत, तो आओ मित्र,
स्वीकारें
बस यही शेष है अंजोरना।
डॉ नीलिमा रंजन
बी-२१५, फ़ॉर्च्यून प्राइड एक्सटेंशन,
ई-८, त्रिलंगा,
भोपाल ४६२०३९
मोबाइल: ७२२२९०९४०५
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Vibha Rani Shrivastava 2022/11/24 03:53 PM
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 26 नवम्बर 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !