अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

एकालाप

आओ ना मित्र, 
बैठो मेरे पास, 
जी लो मेरे साथ, 
यही है ईश्वरेच्छा
और यही प्रारब्ध।
 
स्मरण रखो औ’ विश्वास करो, 
मानव हो सकता है
मात्र मानव, 
अपनी कुशलता-हताशा-पराजय के साथ भी, 
और यह गात
होना होगा इसे आत्मा से एकात्म।
 
चलो ढूँढ़ें युवावस्था का दाय
बढ़ती वय में
और पाएँ शान्ति विवेक में, 
गंभीरता में, विद्या में, ज्ञान में।
बाँधे सभी एक अनुशासन में
जानें कि क्यों, कब, कैसे हो जाएँगी
विपरीत धारणाएँ एक।
 
तन कर सकता है चेष्टा छल की, 
आत्मा से, 
समर्थ है क्या समक्ष आत्मा के
क्योंकि बनता है यह तन, 
कष्ट-पात्र, कुचेष्टा से।
 
मानव है
उठ खड़ा होता है
भावनाओं की तीव्रता से, 
यत्न करता है सम्हालने
और होता है ऊर्जित
सकारात्मक, 
बढ़ चलता है क़दम-क़दम
सोचता है
चलो करें आकलन विगत का
स्वीकारें आज के निर्णय को।
 
कुंभकार ईश्वर, 
हम आकृत माटी पुतल, 
वही भाग्य निर्माता, 
वही भाग्य विधाता, 
वही निर्धारण कर्ता
हमारा भविष्य अवधारक।
धर दिया उसने
उच्चतर मंच पर हमें, मानव को, 
और संदेश दिया:
 
संदेश दिया, 
आत्मा अमर, अजेय।
और मानव गात, 
प्रथम चरण अस्तित्व का, 
युवावस्था अप्राप्य पाने का संकेत
तन चेष्टा करता है, 
छलने की प्रकृति को, 
अंतरात्मा को
क्या हृदय संगी है तन का? 
मथ देते हैं प्रश्न अनुत्तरित।
 
स्वीकारते हैं, 
सभी है दैवीय अनुकम्पा, 
हम मात्र जीते हैं, 
सीखते हैं, 
वय देती है वरदान
अंतर करने का
समझ पाने का
सत्य-असत्य, उचित-अनुचित।
 
विस्मृत नहीं करना होगा, 
अज्ञात है सफलता-असफलता, 
मिलेगी जीवन के उस पार, 
तो जीना होगा, 
ईश्वर प्रदत्त मानव जीवन, 
संयम धर, संतोष कर।
 
यह मानस भी ईश्वर अनुग्रह, 
शेष है कदाचित अंतिम परियोजना
अचिंत, तो आओ मित्र, 
स्वीकारें
बस यही शेष है अंजोरना।

डॉ नीलिमा रंजन

बी-२१५, फ़ॉर्च्यून प्राइड एक्सटेंशन, 

ई-८, त्रिलंगा, 

भोपाल ४६२०३९

मोबाइल: ७२२२९०९४०५

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

Vibha Rani Shrivastava 2022/11/24 03:53 PM

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 26 नवम्बर 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं