भाग रहे हैं लोग
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत जयराम जय1 Jul 2023 (अंक: 232, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
महा नगर की
दौड़ धूप में भाग रहे हैं लोग
कँवारे मौसम का
पागलपन सीख रहा छलना
चली हवा बदचलन
यहाँ पर सँभल सँभल चलना
स्नेहिल बन करके
कपटी बम दाग रहे हैं लोग
रोज़ी रोटी के जुगाड़
में गुमसुम हुआ सुआ
ख़ालीपन है बहके
सपने मन शैतान हुआ
मज़बूरी में क्या
करते बन काग रहे हैं लोग
अर्थशास्त्र का पाठ
पढ़ाकर तिल का ताड़ बनाते
इसकी टोपी उसके
सर पर रोज़-रोज़ पहनाते
जीवन यापन
स्वार्थ रज़ाई ताग रहे हैं लोग
कितने दिन तक
और चलेगा यूँ मन को बहलाना
नींद न आये रात न भाये
बस सपने सहलाना
अपनी अपनी
मजबूरी में जाग रहे हैं लोग
कौन चलाये उनकी
बातें उनकी बात निराली
ऊपर से हैं भरे-भरे
पर भीतर से ख़ाली
पानी देने वाले
पानी माँग रहे हैं लोग
महानगर की
दौड़ धूप में भाग रहे हैं लोग
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
बाल साहित्य कविता
ग़ज़ल
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं