मुड़के देखा नहीं मुस्कुराए नहीं
शायरी | ग़ज़ल जयराम जय15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
हम बुलाते रहे आप आए नहीं
मुड़के देखा नहीं मुस्कुराए नहीं
है ख़ता कौन सी ये बता दीजिए
आप आगे क़दम क्यों बढ़ाए नहीं
कुछ समय तो हमें भी दिया कीजिए
आप ही के तो हैं हम पराए नहीं
जब भी देखा तुम्हें देखता रह गया
यार जी भर तुम्हें देख पाए नहीं
है सुना फूल सा है कोमल बदन
और अधर पांखुरी हैं बताए नहीं
दूर से ही हमेशा चिढ़ाते रहे
पास आके कभी खिलखिलाए नहीं
जब से देखा तुम्हें जाने क्या हो गया
और दूजा यहाँ कोई भाए नहीं
तुम चमकती हुई रूप की इक नदी
चाह कर जिसमें हम तैर पाए नहीं
जबसे देखे तुम्हारे नशीले नयन
वो नयन हम कभी भूल पाए नहीं
जी रहे हैं अकेले तुम्हारे बिना
पाँव मेरे कभी डगमगाए नहीं
'जय' बहुत दिन हुए साथ में बैठके
प्रीति के गीत हम गुनगुनाए नहीं
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