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लौट गई है रात

 

अभी-अभी अपना सा मुँह ले
लौट गयी है रात
भौंरे लगे समझने फूलों के 
कोमल जज़्बात
 
अम्मा मुँह अँधियारे उठकर
गाने लगी प्रभाती
हुड़क रही है बछिया कब से
गइया ख़ूब रम्भाती
चिड़ी-चिरौटा पंख पसारे 
करें प्रीति की बात
 
नई बहुरिया जगी रात भर
खेल किया नकटौरा
एक हाथ का घूँघट काढे़
झाड़ रही है चौरा
बबुआ पूछ रहे अलसाये
क्या हो गया प्रभात
 
अलगू भइया गये हार हैं 
हल कांधे पर धारे
ख़ून पसीना एक किये हैं
कैसे प्रगति पधारे
पकी फ़सल है मन में शंका
बदला करे न घात
 
धूल भरा गलियारा गुम है
गुम बम्बे की पटरी
पाट दिया है तारकोल से
दौड़ रही अब छकड़ी
मुखिया दाढ़ लगाये देता 
बात-बात में मात

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