ख़ुद से नज़रें चुराने के दिन आ गए
शायरी | ग़ज़ल जयराम जय1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
दर्द में मुस्कुराने के दिन आ गए
प्यार के गीत गाने के दिन आ गए
फूल बनने को कलियाँ मचलने लगीं
भ्रंग के गुनगुनाने के दिन आ गए
भूल पाएँगे तुमको नहीं हम कभी
आँसू-आँसू हो जाने के दिन आ गए
जान पाए न हम उनकी चालाकियाँ
दिन में तारे दिखाने के दिन आ गए
चोट पर चोट दे घाव दिल में किया
सिर्फ़ दिल को दुखाने के दिन आ गए
लूटकर ले गया दिल के अरमान सब
फिर बहाने बनाने के दिन आ गए
जाल में उसके फिर ज़िन्दगी फँस गई
जान उससे बचाने के दिन आ गए
जो हुई भूल हमसे है वो किससे कहें
ख़ुद से नज़रें चुराने के दिन आ गए
बैठ कर साथ में एक दूजे की 'जय'
सिर्फ़ सुनने-सुनाने के दिन आ गए
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