भाइयों की आपसी तकरार से डरने लगे हैं
शायरी | ग़ज़ल अश्विनी कुमार त्रिपाठी1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
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भाइयों की आपसी तकरार से डरने लगे हैं
घर के आँगन आजकल दीवार से डरने लगे हैं
आप कहते थे मेरा किरदार आईने सा है अब
आप ही क्यूँकर मेरे किरदार से डरने लगे हैं
सीख ना पाए ज़रा भी जिस्म को तरजीह देना
इसलिए इस दौर में हम प्यार से डरने लगे हैं
सादगी पर आपकी जो जाँ लुटाते फिर रहे थे
वो सभी अब आपके शृंगार से डरने लगे हैं
जो न डरते थे कभी तलवार ख़ंजर गोलियों से
सुन रहा हूँ वो क़लम की धार से डरने लगे हैं
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