चलो, हाथ पकड़कर साथी
काव्य साहित्य | कविता सरिता गोयल1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
साथ-साथ कहीं चलते हैं
चलो, हाथ पकड़कर साथी हम,
साथ-साथ कहीं चलते हैं।
उम्र गुज़ारी उलझन में,
चलो, कुछ ख़ुशियाँ अब चुनते हैं।
मेरे दिल में हैं अरमान कई,
जो तुमसे अब कहने हैं।
तुम भी कह देना मुझसे अब,
जो बात तुम्हारे दिल में हैं।
एक-दूजे के घावों पर हम,
प्यार का मरहम मलते हैं।
चलो, हाथ पकड़कर साथी हम,
साथ-साथ कहीं चलते हैं।
मैं साथ निभाऊँगी तेरा,
तू भी देगा साथ मेरा।
भूलके सारी दुनिया को,
यह वादा आज हम करते हैं।
चलो, हाथ पकड़कर साथी हम,
साथ-साथ कहीं चलते हैं।
ढूँढ़ न पाए अब हमें ग़म कोई,
इक ऐसे साये में चलते हैं।
चलो, हाथ पकड़कर साथी हम,
साथ-साथ कहीं चलते हैं।
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Rajani goyal 2022/04/25 10:34 PM
Bahut badiya