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कही-अनकही बातें

कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
मेरी इन झील-सी गहरी आँखों को। 
और छिपी हैं इनमें जो, 
उन कही-अनकही बातों को। 
कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
उन कही-अनकही बातों को। 
 
कुछ तो बह गईं अश्रुधारा के साथ, 
और कुछ रह गईं अटकी पलकों में ही, 
उन कही-अनकही बातों को। 
कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
उन कही-अनकही बातों को।
  
मैं करती रही बात इशारों से, 
दिया जवाब संकेतों में तुमने भी, 
कपाट अधरों के खोल के जो, 
बाहर निकल नहीं पाईं, 
उन कही-अनकही बातों को। 
कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
उन कही-अनकही बातों को। 
 
कभी दुनिया वालों ने टोक दिया, 
कभी लाज ने मुझको रोक लिया। 
रह गईं दिल में दबकर जो, 
उन कही अनकही बातों को। 
कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
उन कही-अनकही बातों को। 
 
प्यार की कश्ती उलझ गई, 
इस बेशरम भव सागर में। 
लहरों के साथ बह सारी बातें, 
आज भी जो रह गईं मेरे मन में
उन कही-अनकही बातों को। 
कभी फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना, 
उन कही-अनकही बातों को, 
उन कही-अनकही बातों को॥

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