प्यार ही अखंड है
काव्य साहित्य | कविता सरिता गोयल15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
इंसा न जाने क्यों और किस बात पर,
करता घमंड है।
जबकि छाया कम है इस जीवन में,
धूप का साया प्रचंड है।
समय की धारा के साथ बहे जा रहे हैं,
सँभाले नहीं सँभल पाते हैं हमसे,
रिश्ते हमारे हो रहे खंड-खंड हैं।
फिर भी ये इंसा न जाने क्यों,
करता घमंड है।
जब एक पल भी नहीं है हमारे वश में,
हम ख़ुद हैं किसी और के वश में,
अब एक-एक तू ग्यारह बन जा,
क्यों करता विलंब है।
तू जी, जीना सिखा सभी को,
तेरा ही तो पूरा भूखंड है।
मिल-जुलकर बाँटो सुख-दुःख को,
जो जी लिया समझो वही सत्य है,
बाक़ी सब पाखंड है।
प्रेम के धागे में बाँध ले तू सबको,
क्योंकि इस क्षणभंगुर संसार में,
एक प्यार ही अखंड है,
एक प्यार ही अखंड है॥
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