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चमचा की चमचई

 

हम लेखकीय करते हैं। एक दिन हम जा रहे थे पैदल ही तो रास्ते मे सफेद कुर्ता पायजामा में एक चमचा मिल गया। हमसे बोला कि हम राष्ट्रीय टाइप के चमचा हैं। हम कुछ सहयोग के उद्देश्य से सुबह-सुबह मिलने चल दिए आप से। हम चमचा देखा। ऊपर नीचे तक देखा। भारी भरकम शरीर। गोरा टाइप का। बाल में डाई लगा रखा था। स्माइल गजब की रही।

“तो बताओ चमचा भाई क्या मदद कर सकता हूँ।”

हमको कसाई कि तरह उपर नीचे तक देखा। बोला, “तो आप कवि लेखक हैं।” 

हमने कहा, “कोई दिक्कत है क्या चमचा बाबू।”

“नहीं, दिक्कत नहीं है।” 

“किस पार्टी से हैं? हम किसी पार्टी से नहीं हैं। हम तो सरक लेते हैं कोई मोटा रकम दिया।”

“आप मोटे रकम वाले हैं?”

“हाँ भाई, कोई शक नहीं।”

“हमारी पार्टी की तरफ हो जाओ। पार्टी पर कुछ लेख कविता तारीफ में लिखना है। मालामाल कर दूँगा। चार पीढ़ियाँ तक मौज करेंगी।”

हमने बात मान ली। 

चमचा बोला, “कुछ आओ समोसा चाय हो जाय।”

हमने कहा, “चमचा भाई। ऊ होटल ठीक रहेगा।” 

“हाँ चलो दबा-दबा कर खालो कवि जी। मालामाल कर दूँगा।”

हम थोड़ा लालची टाइप के। जी हमार खुश हो गया। हमने मन ही मन सोचा, ‘फँस गया चमचा बेचारा।’

हम दोनो महँगे होटल में गए। खूब दबा-दबा कर एक-एक आइटम खाए। पेट पर हाथ फेरे। सब सामान हम मँगा रहे थे। पैसा चमचा बाबू देगा। पाँच हजार का बिल बन गया। चमचा बोला, “कवि जी बैठे रहिए। पैसा कम है। एटीएम से निकाल कर आते हैं। एक लाख तक आपको एडवांस दे देते हैं।”

हमने कहा, “जाओ भाई जल्दी करो।”

हम सपने बनाने लगे। एक लाख। बड़ा फायदा है लेखकी में। मजा आ जायेगा। एक लाख एडवांस। ऊपर से जमकर खिलाया पिलाया। मजा आ गया। 

होटल वाला बोला, “बाबूजी पैसा जल्दी से जमा कर दो। एक घण्टे हो गए।”

“पैसा आ रहा है सब मिल जायेगा। धीरज रखो।”

दो घंटे बीत गए। तीन घंटे बीत गए। इसी तरह शाम हो गई। पर चमचा दिखा नहीं। मैं समझ गया चमचा हमसे चमचई कर गया। हाय हमारा एक लाख। हम लूट गए। बर्बाद हो गए।

सब स्टाफ आ गए होटल के। 

“पैसा जमा करो बाबू। बेवकूफ बना रहे हो हमें। पैसा नहीं जमा करोगे तो एक माह तक होटल में बर्तन माँजना पड़ेगा।”

मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई। वीआईपी होटल में आज बर्तन माँज रहा हूँ। उस चमचा के कारण एक माह तक माँजना है। अच्छा हुआ चमचा का नेता नहीं आया नहीं तो पाँच साल तक बर्तन माँजना पड़ता अगले चुनाव तक!
 

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