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गुरु के प्रति सच्ची आस्था

 

शिक्षक दिवस पर सब बच्चे अपने अध्यापक को महँगे-महँगे गिफ़्ट दे रहे थे। सब बच्चे गिफ़्ट लाये थे। पाँचवीं में पढ़ रही नेहा भी गिफ़्ट लाई थी। अपने ‘सरजी’ को देना चाह रही थी पर दे नहीं रही थी। सर जी लेंगे कि नहीं। नेहा सिर्फ़ दो टॉफी लाई थी। 

सकुचा रही थी। चेहरा उदास था। मम्मी ने पैसे नहीं दिये। एक रुपये कहीं गिरा हुआ मिला था। वह जानती थी कि घर में पैसा नहीं है। एक हफ़्ते से उसने रुपया सँभाला हुआ था कि सरजी को गिफ़्ट सब देंगे; मैं भी दूँगी। 

सब महँगे-महँगे गिफ़्ट दे रहे थे। 

वह टॉफी एक बार लेकर उठी फिर बैठ गयी। सब लोग हँसेगे। यह सोच कर बैठ गयी। फटे बैग में रख ली। उसके आँखों में आँसू थे। उस दिन घर पर खाना नहीं बना था। बेहद ग़रीब परिवार था। उसके पापा को काम नहीं मिल रहा था। भूख लगी थी। एक बार सोचा टॉफी खाकर भूख शान्त कर ले। नहीं-नहीं यह अपने सर जी को दूँगी। नहीं खाया। 

वह कभी टॉफी को देखती कभी सरजी को। बहुत जतन से एक रुपये सँभाल कर रखा था। सरजी ने देखा। नेहा दुखी बैठी थी। टॉफियाँ मुट्ठी में लिये छुपा रही थी। 

“अरे नेहा, क्या लायी हो।”

वह छिपाने लगी टॉफियाँ। सरजी ने उसके हाथ से टॉफियाँ ले लीं। 

“अरे कितनी अच्छी टॉफियाँ हैं। तुम बहुत अच्छी लड़की हो। आज का सबसे बड़ा गिफ़्ट नेहा का है।”

सरजी ने उसके चेहरे पर मुस्कान देखी। नेहा ने देखा सरजी बड़े प्यार से उसकी टॉफियाँ खा रहे थे। नेहा बेहद ख़ुश थी। आँखों में आँसू भी थे। 

सबसे सस्ते गिफ़्ट में छिपी थी गुरु के प्रति सच्ची आस्था। एक भरोसा। एक स्नेह। एक करुणा। एक समर्पण। बहुत कुछ छिपा था उन टॉफियों में। सरजी बड़े प्यार से टॉफियाँ चूसते रहे। नेहा सरजी को टॉफियाँ चूसते हुए देखती रही। सरजी भावविभोर होकर टॉफियों में आनन्द ले रहे थे। नेहा भी इस दृश्य को देखकर भावुक हो रही थी। पूरा भावुक माहौल हो गया था। 

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टिप्पणियाँ

अरुण कुमार प्रसाद 2024/02/24 02:00 PM

यह होना चाहिए।

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