सुकून चाहता हूँ
काव्य साहित्य | कविता जयचन्द प्रजापति ‘जय’15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बहुत बेचैन हूँ
उलझन में हूँ
बहुत घबड़ाया हूँ
एक शान्त स्थिर भाव
मन में लाना चाहता हूँ
पसीना से भीगा हूँ
हे हवा!
तुम सुकून दे सकती हो
अल्प अवधि के लिये
लम्बी अवधि के लिये
सुकून चाहता हूँ।
पर मिलेगा नहीं
यह सुकून मिल सकता है
अमानवीय गुण
ख़त्म होने पर
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