काला चींटा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता जयचन्द प्रजापति ‘जय’15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
काला चींटा एक दिन माँ से बोला,
ठंडी के मौसम में दे दो एक झोला।
आलू, गोभी, टमाटर, बैंगन लाऊँगा,
रोज़-रोज़, हरी-हरी सब्ज़ी खाऊँगा॥
बड़ा होकर मैं रोज़ स्कूल जाऊँगा,
रोज़-रोज़ गिनती पहाड़ा सुनाऊँगा।
लड़ाई-झगड़ा जो बच्चे करते हैं,
सरजी की डंडी रोज़ खाते हैं॥
और बड़ा होकर नानी के घर जाऊँगा,
बड़े बड़ों का सम्मान हर पल करूँगा।
और बड़ा होकर ख़ूब कमायेंगे पैसा,
पैसा कमाकर हो जाऊँगा बड़ों जैसा॥
पान, गुटखा, तम्बाकू नहीं खाऊँगा,
चोरी, बेईमानी कभी नहीं करूँगा।
प्रेम का सच्चा जीवन अपनाऊँगा,
छोटे, बड़े सबको गले लगाऊँगा॥
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