हँसने दो
काव्य साहित्य | कविता जयचन्द प्रजापति ‘जय’1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
माँ
मैं माँ नहीं बनना चाहती
अभी खेलना चाहती हूँ
लुकाछिपी का खेल
करना चाहती हूँ ठिठोली
उड़ना चाहती हूँ
सपनों का पंख लगाकर
यह लिपस्टिक
ये चूड़ियाँ
ये बालियाँ
घूँघरू
पायल
क्यों ख़रीद रही हो?
नहीं चाहिये
नथुनी और झुमका
क्या तुम
मेरा हँसना नहीं देखना चाहती हो?
नहीं क़ैद होना चाहती
पति के जेल में
माँ लौटा दे
इन शृंगारों को
अभी हँसना चाहती हूँ
ख़ूब उड़ना चाहती हूँ
हँसने दो
अभी माँ
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