अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

एक झूठा दिलासा

 

टोनी के पापा चले गए इस संसार से जब तीन साल का था टोनी। 

सबके पापा हैं। मेरे पापा कहाँ हैं। आते नहीं हैं। रामू के पापा तो चले गए थे वो तो आ गए। मिठाइयाँ लाए थे। टॉफ़ियाँ लाए थे। मेरे पापा पता नहीं कब आयेंगे। आयेंगे तो ख़ूब बात करूँगा। पूछूँगा जल्दी क्योंं नहीं आते हो। जाया करिए पापा। जल्दी आ जाया करिए। बहुत याद आती हैं। 

मम्मी के पास जाकर टोनी मम्मी से कहता है, ”मम्मी, पापा कब आयेंगे। तुम तो कहती थी। पापा कमाने गए हैं। ख़ूब पैसा लायेंगे। टाफियाँ लायेंगे। सबके पापा बहुत अच्छे हैं। पापा हम लोगों को याद नहीं करते हैं। गंदे पापा हैं।”

“नहीं बेटे, छुट्टी नहीं है। छुट्टी मिलेगी। आ जायेंगे। तेरे पापा तुम्हें याद करते हैं। कहते हैं। आयेंगे तो टोनी से ख़ूब बात करेंगे। टोनी मेरा बड़ा हो गया है। ख़ूब टॉफ़ियाँ लायेंगे . . .” मम्मी ने बेटे को झूठा दिलासा देते हुए कहा। माहौल भयानक पीड़ा का एहसास कराने वाला हो गया था। 

“मम्मी तुम रो रही हो, पापा आयेंगे तब क्यों रो रही हो। टॉफ़ियाँ पापा लायेंगे तो तुमको ढेर सारी टॉफ़ियाँ पापा से कह कर दिला दूँगा,” टोनी मम्मी को चुप कराते हुए बोला। 

माँ टोनी को खींच कर अपने बाँहों में भर कर सिसकने लगी। टोनी भी माँ को रोते देख कर रोने लगा। ग़मगीन माहौल हो गया था। वेदना मुखर हो गई थी। चेतना शून्य हो गई थी। करुण बहाव झर-झर बह रहे थे। रुदन बेधता हुआ हृदय को चीर कर रख दिया था। झूठे दिलासे दिलाते-दिलाते माँ टूट गई। 

“टोनी अब तेरे पापा कभी नहीं आयेंगे। तेरे पापा भगवान के घर चले गए हैं।”

“मम्मी, मैं भगवान से कह दूँगा कि मेरे पापा को भेज दो। भगवान भेज देंगे। नहीं भेजेंगे तो बड़ा हो जाऊँगा तो भगवान को मारूँगा, मम्मी!”

बेटे के इस भोलेपन की बातें सुनकर माँ बेटे को देखती रह गई। अनाथ टोनी को माँ थपकियाँ देने लगी। आसमान की तरफ़ एकटक निहारने लगी। भावना शून्य हो गई। एक ख़ामोश पल हो गया था। प्रकृति भी मौन हो गई थी। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कहानी

लघुकथा

कविता

ललित निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं