कोरोना (डॉ. राजेन्द्र वर्मा)
काव्य साहित्य | कविता डॉ. राजेन्द्र वर्मा15 Apr 2020 (अंक: 154, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
हमने तो
जीवन भवन को थे दिए
चार पाये
आपने
धर्म को
अफ़ीम कहा
अर्थ का पाया लेकर भागे
बनाने को
अपना संसार
...... अलग
धर्म से शून्य।
काम को तो
आप
..........वैसे भी
छोड़ नहीं सकते
इच्छानुकूल
कर सकते
........ संकोच-विस्तार
मोक्ष
आपको लगता है— मखौल!
अर्थ और काम का
यह गठजोड़—
.................इन दो पुरुषार्थों से
आँखें नहीं खुलती— आत्मन!
आँखें
बंद हो जाती हैं
या
वि...स्फा...रि...त........!
इन दो पुरुषार्थों से
अहंकार आता है
मोह बढ़ता है
होड़ पैदा होती है
लूटने की—
घसीटने की—
सामने वाले का
गला घोंटने की !
हमने
समझाया था ना
स्वेच्छाचार..........
ख़बरदार !!!
सभ्यता पर वार ........।
आपने
फैला दिया कोरोना
लोग
तड़प-तड़प कर मर रहे
साँसों को तरस रहे
क्या यही है अर्थ?
अर्थ-कोरोना
अर्थ करो ना ..........
सँभलो ना
ये
दो पाये भी लो ना।
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