दर्द-ओ-ग़म
शायरी | नज़्म अरविंद ‘कुमारसंभव’1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
दम भर के लिये ठहर जा साँसों को सँभलने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
यह बेवफ़ाई जो की है ज़माने ने भी वो कम है
ये ज़ख़्म दिये हैं जिसने उसको तो समझने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
ये अश्क़ न रहे क़ाबू देख इश्क़ की तबाही को
इन अश्कों को अब यूँ ही धीमे से निकलने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
यह शमां का बुझ जाना मंज़िल को भुला देगा
ऐ ख़्वाब तू न खोना मुस्तक़िल को सँवरने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
वो आये न थे कल तो दीदार हो जाये आज शायद
मैं यूँ पड़ी हाय बेबस कुछ पल तो सँभलने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
ए दर्द ज़रा दम ले करवट तो बदलने दे
दम भर के लिये ठहरजा साँसों को सँभलने दे
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