दीपक का उजाला
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कहानी प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
गाँव के किनारे एक छोटा-सा स्कूल था। इस स्कूल के शिक्षक, नाम था आचार्य देवदत्त, अपने समय के सबसे विद्वान और सरल हृदय व्यक्ति माने जाते थे। उनकी उम्र लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने कभी ख़ुद को रिटायर करने की बात नहीं सोची। उनका मानना था कि सच्चा शिक्षक तब तक शिक्षित करता है जब तक उसके पास सीखने वाले हों।
देवदत्त का एक विशेष शिष्य था, नाम था आयुष। वह ग़रीब परिवार से था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो देवदत्त को बहुत प्रभावित करता था। आयुष की बुद्धि और जिज्ञासा उसे बाक़ी बच्चों से अलग बनाती थी, परन्तु जीवन की कठिनाइयाँ उसके रास्ते में बाधा बन कर खड़ी रहती थीं। घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण वह कई बार स्कूल छोड़ने का मन बना चुका था, लेकिन हर बार देवदत्त उसे समझा-बुझाकर वापस बुला लेते।
एक दिन, आयुष के पिता बीमार पड़ गए और परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई। उसने देवदत्त से माफ़ी माँगते हुए कहा, “गुरुजी, मुझे अब स्कूल छोड़ना होगा। मेरे घर में कोई कमाने वाला नहीं बचा है।”
देवदत्त ने उसकी आँखों में देख कर कहा, “बेटा, शिक्षा सबसे बड़ा धन है। अगर तुम इसे छोड़ दोगे, तो ज़िन्दगी की लड़ाई अधूरी रह जाएगी। मैं तुम्हारी मदद करूँगा, लेकिन तुम सीखने का रास्ता मत छोड़ो।”
आयुष ने सिर झुकाते हुए कहा, “गुरुजी, मैं कैसे जारी रख सकता हूँ? मेरे पास साधन नहीं हैं।”
देवदत्त मुस्कराए और बोले, “तुम्हें केवल ख़ुद पर विश्वास रखना है। मैं तुम्हारे लिए मार्ग बनाऊँगा।”
उस दिन से देवदत्त ने आयुष के घर का ख़र्चा उठाना शुरू कर दिया, लेकिन आयुष को इसका पता नहीं चला। वे उसे ऐसे तरीक़े से मदद देते कि वह यह समझे कि स्कूल ने उसकी स्कॉलरशिप दिया है। धीरे-धीरे, आयुष ने अपनी मेहनत से सफलता के झंडे गाड़े। उसने पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान हासिल किया और गाँव का नाम रोशन किया।
कुछ वर्षों बाद, आयुष एक सफल वैज्ञानिक बनकर देश का नाम गौरवान्वित करने लगा। वह गाँव लौट आया, लेकिन देवदत्त जी अब नहीं थे। उनका निधन कुछ महीने पहले ही हो चुका था। आयुष को तब पता चला कि उसकी पढ़ाई और जीवन में जो भी मदद मिली थी, वह सब देवदत्त जी की ओर से थी।
आयुष के आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में गर्व और कृतज्ञता। उसने देवदत्त जी के स्कूल में एक बड़े पुस्तकालय की स्थापना की, जिसका नाम रखा गया—दीपक का उजाला, क्योंकि देवदत्त हमेशा कहते थे, “ज्ञान का दीपक जलता है, तो अंधकार का अंत होता है।”
कहानी यही संदेश देती है कि सच्चे शिक्षक वो होते हैं जो अपने शिष्यों को आगे बढ़ाने के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देते हैं, बिना किसी उम्मीद के। शिक्षक दिवस केवल एक दिन नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है उन सभी आचार्यों के लिए जो जीवन में उजाले का दीपक बनते हैं।
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