अफ़वाह
काव्य साहित्य | कविता प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कभी तेरे लौट आने की ख़बर आई थी,
दिल ने उसे सच मानकर ख़ुशी मनाई थी।
पर हर बार वो एक अफ़वाह ही निकली,
तेरी यादों से फिर दिल ने उम्मीद की लौ जलाई थी।
इस अफ़वाह में भी इक हसरत थी,
शायद कभी ये हक़ीक़त में बदल जाए।
तेरी बातों का वो मीठा सा एहसास,
बस इसी उम्मीद से प्रेम अपने दिल को बहलाए।
अब ये दिल हर आहट पर चौंक जाता है,
शायद तू ही हो, सोचकर बहक जाता है।
पर वो अफ़वाह ही थी, जो मस्तिष्क से खेली,
एक और रात की तन्हाई, जो दिल ने अकेले झेली।
आज डॉक्टर ने अजीब सी ख़ुशी जताई थी,
तेरे लाए मीठे बेर देकर, तेरे आने की बात बताई थी।
इसी तरह तेरे लौटने की ख़बर आई थी,
दिल ने उसे सच मानकर ख़ुशी मनाई थी।
पर पता चला, वो बेर नहीं, वही कड़वी दवाई थी,
जो मेरे इस शरीर को ठीक करने के लिए मँगाई थी।
आज फिर से अफ़वाह ने तेरे आने की झूठी उम्मीद दिलाई थी,
तेरी यादों से फिर दिल ने वही उम्मीद की लो जलाई थी।
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