तेरी यादों का उजाला
काव्य साहित्य | कविता प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तेरी यादों में डूबा ये दिल बेसहारा,
हर लम्हा अब लगता है सूना-सपना हमारा।
तेरी हँसी की गूँज अब भी कानों में है बाक़ी,
तेरे बिना हर ख़ुशी लगती है जैसे रोता हुआ कोई बच्चा बेचारा।
तेरी राहों में आँखें बिछाए खड़ा हूँ यूँ ही,
हर ख़ामोशी में छिपी है लौट आने की आस।
सब कुछ मिटा दिया मैंने अपना,
बस तुझे ही पाने की अब एक ही उम्मीद है मेरे पास।
अब दिवाली का उजाला भी फीका सा लगता है,
तेरे बिना ये त्योहार भी अधूरा सा लगता है।
दीप जलते हैं, पर रोशनी नहीं मेरे दिल में,
तेरे बिना हर लम्हा बस अँधेरा सा लगता है।
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