दिन जवानी के हैं चार ये
काव्य साहित्य | कविता अपूर्व कुशवाहा15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
दिन जवानी के हैं चार ये बात हुई अब पुरानी,
चालीस के बाद शुरू होती है नयी एक कहानी।
ज़माने की फ़िक्र नहीं अपनों से कोई गिला नहीं,
ग़म नहीं उन सब का जो कुछ हमको मिला नहीं।
मंज़िलें पा लेने का एक सुखद सा एहसास होता है,
नए रास्तों की खोज सबका मक़सद ख़ास होता है।
ये बस उम्र का एक पड़ाव है जीवन की शाम नहीं,
इस उम्र में शुरू कर ना सकें ऐसा कोई काम नहीं।
बदलो सोच पुरानी और नयी चीज़ें आत्मसात करो,
चिंता का निर्यात करो और ख़ुशियों का आयात करो।
जियो ज़िन्दगी जी भरके और तुम ख़ूब मौज उड़ाओ,
बढ़ते बच्चों के संग फिर से तुम नौजवान बन जाओ।
ज़िन्दगी देखने का एक नया नज़रिया बनाओ तुम,
ख़ुद को दूसरों की ख़ुशी का ज़रिया बनाओ तुम।
चालीस के अनुभव से आने वाली उम्र सुधर सकती है,
अब तक जैसे गुज़री उससे और अच्छी गुज़र सकती है।
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