विवाह
काव्य साहित्य | कविता अपूर्व कुशवाहा15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जहाँ दो अलग लोगों की मिलकर एक होती राह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
गिले-शिकवे के बाद भी जिसमें एक-दूजे की परवाह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
जिसमें दो दिलों की मोहब्बत का निरंतर प्रवाह है
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
वैसे तो ये बसाता है पर कभी कभी करता तबाह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
टूट जाता है ये गर पति पत्नी में कोई बेपरवाह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
विवाह यानी पत्नी की ग़ुलामी ये ग़लत अफ़वाह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
परस्पर त्याग और प्यार से इसमें होती वाह वाह है,
वही प्यारा सा जन्मों का बंधन कहलाता विवाह है॥
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