दूर बस्ती से जितना घर होगा
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक7 Aug 2008
दूर बस्ती से जितना घर होगा।
हमारे लिये वो बेहतर होगा॥
ये दुनियां साथ उसी का देगी।
कि जिसके पास में हुनर होगा॥
सच को फाँसी की सजा होगी तो।
सबसे पहले हमारा सर होगा॥
भरोसा जिस पे किया था हमने।
वक्त पर वो इधर-उधर होगा॥
ज़िंदगी की सजा तो पूरी कर।
बाद मरने के तू अमर होगा॥
तूने एहसान किया था जिस पर।
उसी के हाथ में पत्थर होगा॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- कहने लगे बच्चे कि
- आज कोई तो फैसला होगा
- ईमानदारी से चला
- उसी को कुछ कहते अपना बुतखाना है
- जब कभी मैं अपने अंदर देखता हूँ
- जैसा सोचा था जीवन आसान नहीं
- दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है
- दूर बस्ती से जितना घर होगा
- नया सबेरा
- नये पत्ते डाल पर आने लगे
- मछेरा ले के जाल आया है
- रोशनी देने इस ज़माने को
- हर चेहरे पर डर दिखता है
- हर दम मेरे पास रहा है
गीतिका
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं