रोशनी देने इस ज़माने को
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक29 Aug 2007
रोशनी देने इस ज़माने को।
फूँक डाला है आशियाने को॥
भूख क्या चीज है पूछो उससे।
जो तरसता है दाने दाने को॥
हम हैं फौलाद गलाओ हमको।
हम हैं तैयार पिघल जाने को॥
आज जो चाँद-तारे रोशन हैं।
आये थे हमसे हुनर पाने को॥
जिंदा रहते नहीं आया कोई।
आये मरने पर मुँह दिखाने को॥
तू है बैचेन ग़ज़ल बनने को।
मैं हूँ बेताब गुनगुनाने को॥
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गीतिका
कविता
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