हर चेहरे पर डर दिखता है
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक16 Jan 2009
हर चेहरे पर डर दिखता है।
रहजन सा रहबर दिखता है॥
हम जिसको समझे थे अपना।
दुश्मन का अनुचर दिखता है॥
ग़लत राह पर फूल बिछे हैं।
सही मार्ग जर्जर दिखता है॥
हमने चुटकी भर सुख चाहा।
वो भी यहाँ किधर दिखता है॥
घर की दीवारें सब ऐसी।
सड़कों से भीतर दिखता है॥
हमने कैसी राह चुनी है।
इसमें तो चक्कर दिखता है॥
दुनियां जिसकी पूजा करती।
मुझको वो पत्थर दिखता है॥
जो ख़ुद को कहता है हीरो।
मुझको तो जोकर दिखता है॥
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गीतिका
कविता
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