ईमानदारी से चला
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक24 Feb 2008
ईमानदारी से चला दुनियाँ पर भारी हो गया।
कुछ दिनों के बाद सड़कों पर भिखारी हो गया॥
सामने कुछ और कहते पीठ पीछे और कुछ।
इस कला का नाम अब तो दुनियादारी हो गया॥
दुनियाँभर के जुर्म जो ता उम्र भर करता रहा।
आज कल वो किसी मंदिर का पुजारी हो गया॥
लोग अब एहसान भी करते किसी पर इस तरह।
ज़िंदगी भर के लिये कर्ज़ा उधारी हो गया॥
ताल की इन मछलियों को क्यों नहीं विश्वास है।
आज का बगुला भगत भी शाकाहारी हो गया॥
काम कोई भी करा लो दाम देकर के यहाँ।
नाम रिश्वत का यहाँ अब समझारी हो गया॥
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गीतिका
कविता
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