शून्य से शिखर हो गए
काव्य साहित्य | गीतिका सजीवन मयंक16 Jan 2009
शून्य से शिखर हो गए।
और तीखा ज़हर हो गए॥
कल तलक जो मेरे साथ थे।
आज जाने किधर हो गए॥
बाप-बेटों की पटती नहीं।
अब अलग उनके घर हो गए॥
है ये कैसी जम्हूरी यहाँ।
हुक्मरां वंशधर हो गए॥
क्यो परिन्दे अमन चैन के।
ख़ून से तरबतर हो गए॥
भूल गए हम शहीदों को पर।
देश द्रोही अमर हो गए॥
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गीतिका
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