जानना
काव्य साहित्य | कविता सागर कमल1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मैं जानता हूँ
कि तुम बहुत समझदार हो
साफ़ कहूँ
तो बड़े दुनियादार हो
तुम बहुत कुछ जानते हो
जो चाहते हो, तानते हो!
मुझे पता है कि तुम्हें सब कुछ पता है
तुमने ख़ूब सीख लिया है
योग्यता और सच का अभिनय करना
तुम जान गए हो
झंडे गाड़ने की तकनीक
और साध चुके हो
पानी को आँसू करना
या किसी और के आँसुओं को
पानी की तरह गटक जाना!
ओ महारथी तुम जानते हो
कि दाँत काढ़ने
और दुम दबाने से
कॉलर की सफ़ेदी बची रहती है
‘खी-खी’ का सटीक व्याकरण
तुमने पहले जाना और
सब शास्त्र जेब में धर लिए!
इतने सब के बावजूद मेरे भाई!
तुम्हें बहुत कुछ जानना है अभी
जैसे यही
कि बड़ी उपलब्धि कुर्सी नहीं
बल्कि वो लकड़ी है
जिसके लिए
तुमने सारे जंगल से पाले गए
द्वेष को सही ठहराया
या यह
कि ‘जानने’ और ‘समझने’ में
भारी अंतर होता है
और ‘समझ’ कहती है
कि जानने की सीमा होती है
अभी तुम्हें यह भी जानना है
कि बच्चे की निस्वार्थ मुस्कान
या किताब के मुड़े हुए पीले पन्ने
या खिलता हुआ फूल
या जवानी की पहली महक
या अक्सर दिखने वाले स्वप्न
कुछ भी अकारण तो नहीं होता!!
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