किस देवता से
काव्य साहित्य | कविता सौरभ मिश्रा15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
भाव मेरे व्याकुल शब्द लेकिन मौन
घाव ख़ुद ही कर रहा
मुझको बचाए कौन,
याचना करता स्वयं से
हूँ अकिंचन ज्ञात है,
माँगूँ भला किस देवता से
जो अदृश्य है, अज्ञात है।
डर रहा हूँ कि कहीं
रक्त थमने न लगे
सिमट जाऊँ इस क़दर
एकांत बजने न लगे
आँख की हो ज्योति धूमिल
कंठ में अवसाद हो,
सिद्धांत सिर पर धार्य हो
और कर्म में अपवाद हो
ख़ुद से ही है मोह मुझको
ख़ुद से ही प्रतिघात है,
माँगूँ भला किस देवता से
जो अदृश्य है, अज्ञात है।
है नहीं मालूम मुझको
मंज़िल न ही रास्ता
आँख मूँदे चल रहा हूँ
चलने से जैसे वास्ता
जीत की है चाह मुझको
मैं स्वयं से हारता हूँ,
अचरज है ये जी रहा हूँ
मैं स्वयं को मारता हूँ,
पाने की कैसी चाह है
विद्रोह में ये हाथ है
माँगूँ भला किस देवता से
जो अदृश्य है अज्ञात है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
दोहे
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं