कुछ पल की ये ज़िंदगानी!
काव्य साहित्य | कविता हनुमान गोप15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
कुछ पल की ये ज़िंदगानी,
सुख दुख से भरी रवानी।
माटी के इस संसार में,
छल कपट के बाज़ार में,
हार कर पड़ी सबको बितानी।
कुछ पल की ये ज़िंदगानी।
पैसा पैसा पैसा करता है,
मनुष्य आज पैसे पर मरता है।
रिश्तों का अब ध्यान नहीं,
ईश्वर का भी रहा मान नहीं,
धन दौलत ही अब तो भगवान है,
अलग थलक हुआ हर इंसान है,
जीवन की अब इतनी सी कहानी,
मन में सबके बस लाभ और हानि।
हार कर पड़ी सबको बितानी,
कुछ पल की ये ज़िंदगानी।
भूला भटका आज मानव है,
लोभ और ईर्ष्या में बना दानव है,
इस दानव को कोई कैसे समझाए,
मानव होकर क्यूँ दानव कहलाए।
घर घर की अब तो यही कहनी,
हार कर पड़ी सबको बितानी।
कुछ पल की ये ज़िंदगानी।
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