ऐ ज़िंदगी थोड़ी ठहर जा!
काव्य साहित्य | कविता हनुमान गोप15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
ऐ ज़िंदगी थोड़ी ठहर जा,
तेरी रफ़्तार से घबराने लगा हूँ मैं!
मन के भावों को भी थाम ले कोई,
इस भटकाव से कुम्हलाने लगा हूँ मैं!
वो ज़माना और था, दौड़ती थी जब ज़िंदगी,
अब तो ठहराव में सुकूँ पाने लगा हूँ मैं!
कभी बारिश की इन बूँदों का क़ायल था,
अब कीचड़ से पाँवों को बचाने लगा हूँ मैं!
मोहब्बत भी की, दोस्ती भी ख़ूब निभाई,
अब इन रिश्तों से कतराने लगा हूँ मैं!
समय के साथ शायद सब कुछ बदल रहा,
इस बदलते परिवेश को अब अपनाने लगा हूँ मैं!
ऐ ज़िंदगी थोड़ी ठहर जा,
तेरी रफ़्तार से घबराने लगा हूँ मैं!
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