लोकमय राम की अनूठी छवि
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा सन्दीप तोमर1 May 2025 (अंक: 276, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
पुस्तक का नाम: लोक के राम
विधा: कथेतर साहित्य
लेखक: पूजा अग्निहोत्री
प्रकाशन वर्ष: 2025
मूल्य:₹220/-
प्रकाशक: स्पर्श प्रकाशन
‘लोक के राम’ पूजा अग्निहोत्री की प्रथम प्रकाशित पुस्तक है। इस मायने में भी यह किताब अपनी महत्ता स्थापित करती है कि लेखिका प्रचलित विधाओं यथा—कविता, कहानी, लघुकथा, ग़ज़ल इत्यादि से इतर कथेतर साहित्य से अपने लेखन का आग़ाज़ करती हैं। राम का नाम भारतीय संस्कृति में अत्यंत प्रतिष्ठित है। वे न केवल रामायण के नायक हैं, बल्कि भारतीय समाज के आदर्श और नैतिक मूल्यों के प्रतीक भी माने जाते हैं। भारतीय लोक जीवन में राम का व्यक्तित्व बहुत गहरे तक समाया हुआ है। उनकी कथाएँ आज भी लोगों के जीवन में प्रासंगिक हैं। ‘लोक के राम’ पुस्तक इस आदर्श व्यक्तित्व को लोक की दृष्टि से प्रस्तुत करती है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भी राम के महत्त्व को उजागर करती है।
लेखिका ने यहाँ दो पात्र गढ़े हैं एक रघु और दूसरा महर्षि पिंगाक्ष, यह रघु शबर जाति का एक बालक है, जो माता शबरी का वंशज दिखाया गया है, रघु श्री राम को “शबरी के राम” के रूप में जानता है, लेकिन धीरे धीरे उसकी जानकरी बढ़ती है और साथ ही बढ़ती हैं श्रीराम के प्रति उसके मन में शंकाएँ। परिस्थितियाँ उसके सामने महात्मा पिंगाक्ष को उपस्थित करती हैं, जिनके सम्मुख वह राम के प्रति अपनी शंकाएँ प्रस्तुत करता है और वे उसके प्रश्नों के शास्त्र-सम्मत उत्तर दे उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं। ‘लोक के राम’ पूजा अग्निहोत्री का एक शोधपूर्ण और गहन अध्ययन है, जिसमें लेखिका ने राम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को लोक कथाओं, लोक विश्वासों और भारतीय समाज में उनके आदर्शों के संदर्भ में पेश किया है। यह पुस्तक राम के जीवन के हर छोटे-बड़े पहलू को लोक के दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास है, ताकि हम समझ सकें कि किस तरह राम का आदर्श भारतीय समाज में बसा हुआ है।
पूजा इस पुस्तक में राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित न करके उनके लोक में स्थापित रूप और मान्यता को प्रस्तुत करती हैं। वह पिंगाक्ष के माध्यम से यह बताने का सफल प्रयास करती हैं कि श्रीराम अपने समय के सबसे बड़े नायक थे, जिनके चरित्र में सच्चाई, न्याय, और करुणा की गहरी समझ थी। ‘लोक के राम’ में लेखिका ने राम को न केवल एक राजकुमार, राजा और पौराणिक नायक के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि उनके लोक जीवन के ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया है, जिनसे उनकी अच्छाई, संघर्ष और बलिदान की कहानियाँ जनमानस में गूँज उठती हैं। राम के जीवन में उनके परिवार, मित्रों और प्रजा के प्रति ज़िम्मेदारी, उनकी विनम्रता और उनके आत्म-त्याग की घटनाएँ भारतीय लोक में गहरी छाप छोड़ चुकी हैं।
लेखिका ने राम के जीवन के आदर्शों को समाज के विभिन्न पहलुओं में देखा है। चाहे वह उनके पिता से प्रति सम्मान हो, या फिर सीता के प्रति उनके प्रेम और त्याग का चित्रण हो, माता अहिल्या के पाषाण से स्त्री रूप में आने की गाथा हो या शम्बूक वध प्रसंग हो, पूजा हर पहलू को लोक दृष्टिकोण से समझाती हैं।
पुस्तक में राम की सामाजिक छवि को भी गहराई से प्रस्तुत किया गया है। राम ने जिस तरह से समाज की सेवा की और जनकल्याण के लिए अपने निजी जीवन के सुख को त्यागा, वह आज भी आदर्श माना जाता है। यह पुस्तक यह दर्शाती है कि राम केवल एक महाकाव्य के नायक नहीं थे, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए आदर्श बने थे। उनके जीवन में पितृ ऋण का पालन, भ्रातृ धर्म, राजधर्म और प्रजा के प्रति कर्त्तव्यों का निर्वहन समाज को जीवन की सच्चाई और कर्त्तव्य का अहसास कराता है।
लोक की दृष्टि से राम के जीवन के प्रतीकात्मक महत्त्व को भी इस पुस्तक में दर्शाया गया है। राम का आदर्श न केवल एक धार्मिक संदेश है, बल्कि यह भारतीय समाज के हर वर्ग में गहरी छाप छोड़ने वाला जीवनदर्शन है। ‘लोक के राम’ पुस्तक के माध्यम से यह दिखाया गया है कि राम की कथाएँ, उनके आदर्श और उनके द्वारा किए गए कार्य न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। राम के जीवन से जुड़े हर प्रसंग में लोक की आस्था और विश्वास की गहरी भावना छुपी हुई है, जो भारतीय समाज की सांस्कृतिक धारा को निरंतर प्रवाहित करती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि लोक के राम को लिखने से पहले पूजा अग्निहोत्री ने काफ़ी धर्म ग्रंथों, पुराणों, इत्यादि का विशद अध्ययन किया है, वे रघु के मन की हर एक जिज्ञासा, हर एक शंका का प्रचलित क़िस्सों के बजाय धर्म-संगत तर्कों के साथ निवारण करती हैं, यही इस पुस्तक की बड़ी सामर्थ्य भी है, इस पुस्तक का उद्देश्य ही यह है कि पाठक राम के जीवन और उनके आदर्शों को केवल एक धार्मिक दृष्टिकोण से न देखें, बल्कि समाज और संस्कृति में उनके योगदान को समझें।‘लोक के राम’ हमें यह समझने में मदद करती है कि राम के जीवन से जुड़ी हर कथा और शिक्षाएँ कैसे हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं और हमें किस तरह उन्हें अपने जीवन में उतारकर सच्चे इंसान और आदर्श नागरिक बन सकते हैं।
पूजा ने हालाँकि कथेतर विधा का चुनाव किया है लेकिन यहाँ वे जिस शैली को अपनाती हैं, उसमें प्रश्नोत्तर विधि का सहारा लिया है। पढ़ते हुए बरबस ही यम-नचिकेता प्रसंग याद हो आता है। पूजा भाषा चयन के मामले में भी बहुत सावधान हैं, वे आम-बोलचाल के शब्दों का चयन अवश्य करती हैं लेकिन वे संवाद में वाक्यों की रचना इस प्रकार करती हैं कि यह आध्यात्मिक पुस्तक जैसा महसूस करा जाता है। पूजा के पास असीमित शब्दकोश है, वे जानती हैं कि पाठक के मन में रोचकता को कैसे बनाये रखना है। उनके लेखन में एक क़िस्सागो के दर्शन तो होते ही हैं, साथ ही एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व के दर्शन भी हो जाते हैं, शायद यह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से भी हो सकता है, कारण कुछ भी हो, इस विशिष्ट पुस्तक का साहित्य में स्वागत होना चाहिए।
इस पुस्तक का प्रथम पाठक होने के सुख का अनुभव करते हुए मुझे समीक्षात्मक टीप लिखते हुए भी गौरव का अनुभव हो रहा है।
एक अनूठी पुस्तक साहित्य को देने के लिए लेखिका पूजा अग्निहोत्री का मैं तहेदिल से स्वागत करता हूँ साथ की स्पर्श प्रकाशन की संचालिका सुश्री ज्योति गुप्ता (स्पर्श) का आभार प्रकट करता हूँ जो उन्होंने समीक्षा के लिए पुस्तक भेजकर मुझे अच्छे साहित्य से परिचित कराकर समृद्ध किया।
समीक्षक
सन्दीप तोमर
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