जीवन गणना
काव्य साहित्य | कविता सन्दीप तोमर1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
पार नहीं पाया जा सकता
जीवन की गणितीय आकृति संग
कि
उसका गोलीय पृष्ठ
अनवरत यात्रा है
अंतहीन छोर के साथ
कि
जीवन वृत्त की परिधि का
भ्रमण भी तो है
जिसपर पथ बार बार
दोहराता है ख़ुद को
कि
यह परिमाप है त्रिभुज के
तीन कोनों का
जिसके शीर्ष कोशिश में होते
लाने को ठहराव
कि
यह हो जाता तब्दील
अर्धवृत्त में कभी भी कहीं भी
कभी यात्रा समतल
व्यास की मानिंद
तो कभी कर्व में घुमाती
कि
षट्कोण, चतुर्भुजी या कि अभिलम्ब में
विचरण करती ज़िन्दगी की साँसें
रास्ते तय करती, पर कर न पाती
कही उलझती, कहीं सुलझती
ज़िन्दगी
लेकिन इतना तय मानिए
कि इसे जीना है हर हाल में
जैसे हर आकृति कहलाती ज्यामिति।
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