माँ
काव्य साहित्य | कविता मधुलिका मिश्रा1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बिन कुछ बोले
आँखें पढ़ लेती है,
हर बात को
माँ समझ लेती है।
जिस दर्द का ज़िक्र
करते भी नहीं,
अनकही बातों से
माँ जान लेती है।
दुनिया की है
पर दुनिया से अलग है,
पास रह कर ही
दुनिया बदल देती है।
इंसान है या
भगवान का रूप कोई,
जो दिल से दिल को
हमेशा परख लेती है।
माँ है वो ज़िंदगी
जो ज़िंदगी को भी,
दिल से जीना
सिखा देती है।
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